ज़माना दुश्मन होता तो टकरा जाता | मगर अफसोस तुमने भी , कोई इशारा ना किया |
मैं और भी सितम सह सकता था | मगर अफसोस तुमने ही कह दिया , मुझे भूल जा |
मुझे इसका गम नहीं की उसने फेर ली आंखे | अफसोस ये है की उसने भी , मुजरिम समझा लिया |
तुमने तो प्यार की हर रस्म निभा दी | पर अफसोस उसने मेरी हस्ती ही मिटा दी |