संक्रांति

संक्रांति

बंदे हैं हम देश के हम,
पर किसका ज़ोर,
मकर संक्रांति में उड़े,
पतंगें चारों ओर,
अपना मांझा खुद,
सूतने आज हम,
चले छत की ओर,
हैप्पी मकर सक्रांति |