वो आईने में यूँ खुद को देख रहे हैं, मानो कि जवाब अपना, ही ढूंढ रहे हैं।
क्या गुनाह हैं इन बाँहों का जो इनको इतना तड़पा रहे हों , इश्क तो कमबख्त इस दिल ने किया था , फिर दिल की सज़ा इन बाँहों को क्यूँ दिये जा रहे हों |
'दीपक में अगर नूर ना होता, तन्हा दिल यूँ मजबूर ना होता, मैं आपको ईद मुबारक कहने जरूर आता, अगर आपका घर इतना दूर ना होता, ईद मुबारक |'