प्रशंसा

प्रशंसा

अपनी प्रशंसा सुनकर हम इतने मतवाले हो,
जाते हैं कि फिर हममें विवेक की शक्ति भी,
लुप्त हो जाती है बड़े से बड़ा महात्मा भी,
अपनी प्रशंसा सुनकर फूल उठता है।

Premchand