गुनाहों

गुनाहों

हमारे कुछ गुनाहों की सज़ा भी,
साथ चलती है हम अब तन्हा नहीं,
चलते दवा भी साथ चलती है
अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कुछ,
भी नहीं होगा मैं जब घर से निकलता हूँ,
दुआ भी साथ चलती है |

गुनाह

गुनाह

क्या गुनाह हैं इन बाँहों का जो इनको
इतना तड़पा रहे हों ,
इश्क तो कमबख्त इस दिल ने किया था ,
फिर दिल की सज़ा इन बाँहों को
क्यूँ दिये जा रहे हों |